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इस प्रकार १६६ गुणों का चिन्तवन कर १४ गांठ वाली अनंत बना पश्चात् अनंत ब्रम का मांडना मांडकर श्री अनंतनाथ तीर्थकर की प्रतिमाजी बिरानमानकरे एवं नवीन अनंत को भी कलश में रखकर कलश को भगवान के समक्ष मांडने पर विराजमान करे । पश्चात् श्री अनंत नाथ भगवान का अमिपैक कर पूजन करें । पूर्णाहुति के बाद अनंत व्रत की कथा पढ़कर मोचन मंत्र द्वारा पूर्व की अनंत छोड़कर बन्धन मंत्र पढ़ते हुवे नतीन अनंत दाहिनी भुजार धारण करे ।
अनंत बनाते समय पढ़ने के १६६ गुण ( मंत्र ) (अनंत प्रत के उद्यापन में इन्हीं १६६ गुणों के अर्घ चढ़ाये जाते हैं )
१ चतुर्दश तीर्थ कर मंत्र १ ॐ ह्रीं सद्धर्म प्रवर्तकाय ऋषभनाथ तीर्थंकराय नमः ।
, काठक रहिताय भजित जिन देवाय नमः । , शिवंकरराव संभव तीर्थकराय नमः । . लोकाभिनंदकाय अभिनंदन स्निाय नमः । , क्रोधाधुन्मथकाय सुमति तीर्थंकराय नमः । १. पद्मप्रभ तीर्थंकराय नमः ।
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