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( अनन्त मोचन मन्त्र ) ॐ हीं श्रीं अह सर्च कर्म विमुक्ताय अनन्त सुख प्रदाय अनन्त तीर्थ कराय नमः पूर्वानुवन्धित सूत्र मोचनं करोमीति स्वाहा । ऊपर के मन्त्र को पढ़ कर पहले का बन्धा हुआ अनन्त सूत्र छोड़ना चाहिये ।
( मनन्त बन्धन मन्त्र ) ॐ ही अई' हे मः अनन्त तीर्थ'कराय सर्व शांति कुम २ सूत्र न्धनं करोमीति स्वाहा । ऊपर के मन्त्र को पढ़ कर नवीन अनन्त बांधना चाहिये ।
( अनन्त बनाने की विधि ) अनन्त सोना, चांदी अथवा सूत्र की बनानी चाहिये जिसमें १४ गांठे नीचे लिखे अनुसार १६६ गुणों का चिन्तवन करते हुये बगानी चाहिये प्रत्येक गांठ पर कम से चौदह २ गुणों का विन्तवन करे । १४ तीर्थ का
२४ जीव रक्षा १४ प्रतिकरण
१४ नदी १४ कुलंफर
१४ भव्य नीव राशी १४ अतिशय
१४ रत्न १४ पूर्व
१४ स्वर १४ गुणस्थान
१४ तिथि १४ मार्गणा
१४ अन्तराय निवारण
१६११॥
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