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________________ ११ - वटक मोदक घेवर पायसै श्चरूवर वृत्तशर्करयान्वितैः त्रिविधमुक्कट विष्टरमाश्रितैः परमनंत...... ॥ नैवेद्यम् ॥ ५ ॥ तिमिर नाश कर मणिदीपकै, निजमहः परिधीकृत चन्द्रकैः । ____ कनक कोटि प्रभा वलयांकितैः, परमनंत . " । दीपम् ॥ ६ ॥ अगुरू चन्दन धूप भरैरैरदित नंदन ताड़ित ढुंदुभि । ध्वनि घटाहत देव नरोग्गैः परमनंत"..... ॥ धूपम् ॥ ७ ॥ सुकदली फल चोच रसालकै जनक चन्द्रयुताना कारगौः । त्रय विभूषित सुन्दर विग्रह, परमनं .." ॥ फलं ॥ ८ ॥ शालिनी छंद-पाथोगधैः पुष्पकै स्तंदुलोधै हव्यदधु पकैः श्रीफलाय: । स्वभूनाथैरचितोनंत नायो, देयान्मोक्षः श्री जयाद्य तकीर्तिः । अर्थ ॥ ६ ॥ जिस कलश में अनंत रक्खी हों उसमें : ॐ हीं अहं हं सः अनंत केवलिने नमः,, इस मंत्र के १०८ जाप्य देकर बाल वस्त्र से कलश का मुह बंधकर कलश मांडने पर विराजमान करके पश्चात् जयमाला पढ़ना चाहिये ॥ जयमाला ॥ शावू ल विक्रोहितच्छंद -यो भोगेऽखिल भृपादित पदो, राज्यं परं प्राप्पवान् । मक्ति प्रकल सुरेन्द्र सुन्दर शिरः, कोटी प्रमाद्योता ॥ - ॥१८८ - - -
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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