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________________ १८६] पश्चाद्यश्च निम्बरः किल वा तपास सर्व मुदा । श्रीमत्तीर्थमनंत माशु शिब्द, तं तीर्थनाथं भजे ॥ १ ॥ स्वर्ग विमानात् कृत भृ वासं, कृत मध्यामत पंचक नाशं । नौमि चतुर्दशकं जिनदेवं, देवासुरनर कृतपद सेघ । २ ॥ सुरपति वंदित गर्भ कल्याणं, मेरू शिखर कृत जन्म स्नानं । नौमि० ॥ ३ ॥ दीक्षा समये शिक्किास्टं, भूचर खेचर पति सु न्यूदं .. नगि. ॥ ४ ॥ ज्ञानावसरे सभा प्रवेशं, धनपति विरचित कोष्ट निवेश ॥ नौमि० ॥ ५ ॥ मानस्तंभ विदारितमान, किन्नर युगली कृत वर गानं ॥ नीमि० ॥ ६ ॥ छत्र श्रय लोक त्रय शोभ, दुरीकृत मायामद लोभं ॥ नौमि० ॥ ७ ॥ दिव्यध्वनि नाशित पर मोह, वैर रियजित जी। विद्रोहं ॥ नोपिः ॥ ८॥ क्रोश चतुष्टय दुख निवार, लोक त्रय भव सागर सार । नौमि० ॥६॥ अशोक तरु दर्शनहतशोक, भामण्डल प्रति बिम्बित लोकं । नौमि. ॥ १० ॥ समेद शिखर मुक्ति श्री धरणं, लयकीर्ते य कारण शरण ॥ नौमि ॥ ११ ॥ एलिनीच्छन्दा-वितरति भवनाश, दुष्ट कर्मारिवाशं. जिनवर वर चन्द्रोऽनंत नाथो विद्रो । त्रिभुवन शुभकीति, रत्नभूषाप्त मूर्ति, रगुषित सुख पूतिः श्रीजयाद्यत कीति । महा' । 4
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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