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रेणुकः रेणुकै झल्लरी झूमये, तूर वजंति गाणा विहप्पाडियं ।।
पीयमी पीयमी वंश विशालये, खीसिपी खोणिसी केस कंसालये ॥४॥ द्रु' हु मंद्रु द्रुमं शंख घन शब्दये भौभि भौमि भौमि भौभि भेरी रव शब्दये
मेरमा स पंच राग मेव मल्हार ये, राग पट्त्रिंश संगीत सद्व रये ॥ ५ ॥ नीर गंधादिभिः द्रध्यकै श्चारये, गीत नाट्यादिभिः पुष्पकैरचये ।
श्री विमल नाय को देव देवीसरे पूजितोऽष्टधा विभु द्रव्यसत्समुत्करैः ॥६॥ घत्ता-निखिल यतिनिसेव्यं, देव देवेन्द्र सेन्यं, विमल गुण समुद्र, केवलज्ञान चन्द्रं ॥ अमितगुणगणेन्द्रं. पोह कृष्णा दिनेन्द्रं, नमतिभमति नित्य, श्री जपायतकीर्तिः ॥ महाधं ॥
॥ श्री अनंत नाथ पूजा ॥ सुर नदी नद तीर्थ समुद्भवैः कज़पराग सुपिंजरितै जलैः ।
स्फुरदशोक धरारूद संभितः परमनंतजिनेन्द्रमहरजे ।। जलं ॥१॥ सुघनसार विमिश्रित चन्दन, परिमलागत भृङ्गसमानुलैः !
त्रिविध तापहरै भकारकैः परमनंत ........ ॥ चन्दनं ।। २ । विशद मौक्तिक संनिम शालि जै, मधुर दिव्य वचो मृत वर्षणः ।
__ परि निषिक्त सुरांदिश दो गणं, परमनंत .... ॥ अक्षतं ॥ ३ ।। प्रचुर रत्नपरिष्कृत सत्कणैः, कनक दंड किंकणिका युवैः ।
नव कजैश्चमरैः परि वर्जितैः परमनंत...... ... ... । पुष्पं ॥ १ ॥
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॥१८॥
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