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________________ पनि विमान समान सनिर्मलैः दिपल केवलज्ञान समानकैः । सुचनसार विनिर्मित पर्तिभिः विमल... ... । दीपम् ॥ ६ ॥ मलय पर्वत कक्ष समुद्भवै रति सुगंध पदार्थ विमिश्रितैः । गगन मार्ग गते शुभ धृपकी बिमल० ..... ॥ धूपम् ॥ ७ ॥ फलभरै भुवि दाडिम मोचकै, पनत कम्र कपिन्थ कलिन्दकैः परिमलोघ सुपच मनोहगः विमल ......... ॥ फलम् ॥ ८ ॥ जलादि सच्चन्दन पुष्पकोवैः सदक्षतहरूप स दीपधूपैः फलेयजे श्री विमलं जिनेन्द्र, जयादि कीर्ति प्रणतं महान्तं ॥ अर्थ ॥ ६ ॥ ॐ जयमाला ॥ मालिनीच्छंदः -विमलतर सुकीर्ति, तैजस व्याप्त मूर्ति । सकलगुणगरिष्ट, प्राप्तलब्ध्या वरिष्ठं । विमल जिनबरेन्द्रम्, सिद्धयेस्तौम्यतन्द्रं, त्रिभुवन पतिनन्य, भव्पवृन्दाभि बंद्य... । श्री जिन मन्दिरे, भावना संयुतं, नृत्यये अप्सरा हावभावान्त्रितं ॥ भाषनी यंतरी, खेचरी, भूचरी, कन्यदेवी मरी, ज्योतिषी किन्नरी ॥ १ ॥ विभ्रमादि विलासः सदा मंडितः, कोकिला कइला सप्त स्वर मंडितः। मादिमा घेई घेई पाइसंचारणं, धमपधों धमपो मादलाधारणं ।। २ ॥ योगणि योगणि गयेन्मन्डलं, शब्दये भौं भौं भी भौं भूगलं ॥ दुमि दुमि दुमि दुमि दोदलं गजये, झूमिकै भूमिकै घूघरी घूमरैः ।। ३ ।। । ॥१८६।
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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