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________________ - -- - -- - - धनराज विनिर्मित सत्सुखदः, पिफजीकृत काम कपाय मदः, विवनोतु. ॥ ४ ॥ निज केवल चोधित लोकभरः, निज घेवक बांछित सौख्यकार, वितनोतु. ॥ ५ ॥ धरमी धर पूजित तीर्थ यरः, बरबोध विनाशित प्रोहभरः । क्तिनोतु० ॥ ६ ॥ यचा-वसुपूज्य जिनेश्वर, घर तीर्थेश्वर, मुवनेश्वर चर्चित चर ॥ श्यकीर्ति सुखाकर, दुरित तिमिर हर, त्रिभुवन र मंगल काणं . ७ ॥ महाधं ॥ ॐ विमलनाथ पूजा सकल तीर्थ सदन वारिभिः, सुरभि शीतल मावविशेषकैः विविधताप हरैः सुख्न हेतवे, विमलतीर्थकरं परि पूजवे ।। जलं ॥ १ ॥ सफल गंध समन्धित चन्दनैः, परम ताप निवारण कारण । ___परिमलाहत षट्पद पंक्तिमिः विमल'... ॥ चन्दनं ॥ २ ॥ अनुपमैरमृतामि समुज्ज्दलैः, सुरभि शालि समभव तंदुलैः ।। उभय पक्ष विखंडित को टिभिा, विभ....... !! अक्षतं ३ ॥ परिमलोत्कट पुष्प भवरैः; वट्टल चम्पक पाटन मल्लिका । ___ कमल मोगर जाति समवैः , विमला ...... ॥ पुष्पं ॥ ४ ॥ नक वर्ण घृतैः फल माजन श्चरूवरैर्वटकाव्य मुपायसः । नयनचित्त सु नासा तोपदैः विमल... ... ॥ नैवेद्यम् ॥ ५ ॥ -- - - -
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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