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________________ ·· ८३ । श्रेयान् दिशतु वः श्रयो • || जयमाला || धर्मामृत पयोनिधिः एकादशो जिनोध्येयः मुनीन्द्रोध्यान निश्चलः ॥ जय जिन श्रेयान् जिनदेव नमः, जबधीर कृता मर सेव नमः । जय सर्व कर्ममल रहित नमः, जय २ त्रिभुवनपति सहित नमः ॥ जय सकल गुणाकर वीर नमः, जयशुक्लध्यानधर धीर नमः । जय मदन दवानल मेघ नमः, जयनिराधार जन नाथ नमः ॥ जय गुण गणसेवित पाद नमः जय जलधर ध्वनिसमनाद नमः । aप सम्यकचारित धरण नमः ॥ जय पुण्यांमोनिधिचन्द्र नमः जय व्यक्त मोहमद माय नमः । कर्मकलंक दह दखाकुकुल मंडनं । जय कनक कांतिवर काय नमः प्रता— श्रयान् श्रयेोधः, जयकीर्ति जयकृत, दुति तमोहत, पन्चेन्द्रियमन दंडनं ॥ महार्घ ॥ ॥ वासू पूज्य जिन पूजा ॥ शालिनी छंद - गंगा देवा सिन्धु तोयेंः, तृष्णा तापघ्नैरर्घदानानुभाजं । नित्यं दिव्य प्रातिहार्पाष्टकाढयं, तीर्थेशं तं वासुपूज्यं यजामि ॥ जलं ॥ १ ॥ श्री खंडेश्च कुंकुमाद्येरनिद्यः, मृगोदवृत्तेः करैश्चन्द्रकार्यः ॥ नित्यं दिव्य ॥ चन्दनं ॥ २ ॥ ॥१३३॥ ---
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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