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श्री चन्द्र नैमलयभूधर संभवेश्च, काश्मीर चन्द्र मिलिरलि झंकृत ॥ गीयो० ॥ चन्दनम् ॥ २ ॥ श्री राज भोगवन शालि समग्र जाते . शी तन्दुल्लैर मृतफेन हिमाम् वर्णैः । गीर्वाण. ॥ अक्षतम् ।। ३ ।। संतान चम्पक नमेरू कदम पुष्पैः सौरम्परागमिनितालिकदम्बकैश्च ॥ गीर्वाण ॥ पुष्पम् ॥ ४॥ शाल्योइन प्रचुर गव्य नुनूप शाकै,-न्यून घेवर युतैश्च हविविचित्र । गीर्वाण० ॥ नैवेद्यम् ॥ ५ ॥ दीपोन्हौ स्तिमिर राशि शिना गटन: एम तिमणि भामुरांगैः ॥ गीवांग ।। दीवम् ॥ ६ ॥ कृष्णागुरू प्रमुखशुद्ध मुगंध द्रव्यैः धूपैर्विदीपित दिगंतर शुनदेशैः : गीर्वाण ॥ धूपम् ॥ ७ ॥ श्रीनारिकेल पनसाम्र सुधीज पूरैः, राजादनादि कदली फल दाडिमैश्च ।। गौर्वाक्ष । फलम् ॥ ८ | पानीय गंध कुसुमाक्ष त पक्ष हव्य: दीपैश्च धूप फलकै जयकीर्ति सेव्यं । गीर्वाा. ॥ अर्थ ॥ ६ ॥
॥ जयमाला। घत्ता-श्री सुनिधि शिनेन्द्रम् परमानंद, सेवित सुरनर वर मिकरं । ___वन्देऽहं गुण, त्रिभुवनजं, दीमज्ञान परिन करम् ।। १ ।। जगन्नाथ सेव्यं, जगदय पादं जगन्मित्र मान्यं, ताशेष साई ।
___ यजे भावशुद्धयान्वह पृष्पदंत, शुभैरष्ट द्रव्यैः शशिज्योति कान्त ॥ २ ॥ बिमोहं विशोकं विरोग विदेह, विमायं विकार्य विलोभं क्लेिहं ॥
महाधीर बीरं, महाबुद्धिरूपं, महाज्ञान भानु नरेन्द्रादि भूपम् ॥ ३ ॥ महाशीलधार भवाल्लब्धपारं, महानव्य हारं महाकर्म कारं ॥
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