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________________ . . . ॥१७७|| निर्जराहि मर्यनाथ, सेवितांत्रिमष्टर चन्द्रभास मर्चयामि तीर्थनाथ मीरवरं ।। जलम् ।। १ ।। शीतलेन वदनेव, केशरेणवासिना, गंध लुब्ध षट् पदेम, पाप ताप हारिणा | निर्जग. ॥ चन्दनम् ॥ २ ॥ पुष्यशालि बीनकै रिपात्रहारपाण्डुरैः न्यशालि संसौरमण्ट कोटि तन्दुलैः । निर्जतः ॥ अक्षतम् ॥ ३ ॥ सिन्धु दार कलिका, पुण्डरीक मल्लिका । पारिजात केतकी, कदम्ब कुन्द चम्प । निर्जरा ॥ पुष्पम् ॥ ४ ॥ नव्व बव्य । तूप भक्त सक्त पायसः यसनाध्य पूरिका सुमोद कादिभिर्वरः ॥ निर्जरा० ॥ नैवेद्यम् ॥ ५ ॥ दीपक मनात, निर्मितः शिंखोजले, बामपात्र वजितैः सुपात्रमध्यसस्थितः । विजा ॥ ौपम् ॥ ६ ॥ अोम भाग संनतरनचे धृष धूम्रकै नीरदालि समिमैः कुकर्म गर्म दाहयः । निर्जरा० ॥ धूपम् ॥ ७ ॥ कनकान नारिकेल मीजा की गोस्तनी कपित्थ घुगराज भक्ष्य दाडिमः । निर्जरा० ॥ फलम् ॥ ८ ॥ और गंधपुष्पका सादि हुल्य दो । भूप धूम्र सत्फलैः बयाध कीर्ति सेवितम् । निर्जरा० । अर्घ । । । १७
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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