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________________ 4 . 0 ॥२७४ रसाल फल कंदली मुक चोचराजादनः महामधुर माधरी फल सु चित्तपूगर्दितः ।। अमेय० ॥ फलम् ।। ८ ॥ पयः सुरभिपुष्पकेश्वरूभिरक्षतै दीपकः । ___ फलेस्तुलधुपकै यति कीर्ति कीर्तितम् ॥ अमेयः । अर्थ ॥ ॥ जयमाला ॥ पत्ता-जयवीर दमाकर, गुलरत्नाकर, मुखकर निर्मलशीस । जिनकमल दिवाकर; कलिमल हरजिन, पमपम शिव नारी बरं ॥ १ ॥ अजरामर केवलं लम्धिर, शिवतौरुष सुधारस पानकरं । प्रणमामि भवोदधिपारकर, मिनपनन विभासुर नादरं ॥ २ ॥ फ्मसंयम भावकमारघर, शनयोजनसौम्य सुभिवकरं; ॥ प्रणमामि० ॥ ३ ॥ कलि कल्मष पंक सुशौचबरं, भानार्जितगद्यसुवर्णव ॥ प्रणमामि० ॥ ४ ॥ निज भार भानु सहस्र रूवि, कृतदुर्धर काम का शुचिं ॥ प्रणमामि. ।। ५ ।। अभिमान महोरून तोदकर, मुखरस्न नदीपसारतरं ॥ प्रणमामि० ॥ ६ ॥ सविवेक गृहं हत मृत्युप्रदं, कुमतान्धतमोपहध्यानपदं ॥ प्रणमामि ॥ ७ ॥ कमलांकितसुन्दर देहधा, कमलापनि सेचित बोधभर ॥ प्रणमामि ॥ ८ ॥ हरि शकरपात सुदर्प हरं, हरिताप असंयम लब्धिवरं ॥ प्रणमामि ॥६॥ AVM । ॥१५४
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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