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________________ १७३॥ - - - - - - ॥ श्री पद्म प्रम पूजा ॥ विलिम्प पति वाहिनी, प्रभृतितीर्थ म्यादको सुरेन्द्र वचनोपमैः सुधनसार संवासितैः अमेयमहिमाकरं विकच पद्म भासा निधि ___महामिसुर सेवितं जिनवरेन्द्र पनप्रभं । जलम् । ११ प्रभूत मलयोद्भवै. सरस केशलि श्रितः मिलिन्द निकरोद्भवत्सास राज्य कारकैः ॥ अमेय० । चन्दनं । २ ॥ तुपार हेम चुकास सिधरी श्रुकोजले , सुगंधश्न शानिज सुहिमुवित बीजाङ्कः ॥ अमेय || अद तम् ॥ ३ ॥ कदम्ब सुख मल्लिका बल कुद नीलोत्पलैः, मेरू कुसुमोक”विकच सिन्धु वाराम्बुजैः । अमेय० ॥ पुष्पम् ॥ १ ॥ विराज्य परिचितै,घटक सूप शाल्योदनैः क्षधामनिवार विमल हेम पात्रस्थिते. ॥ अमेय० ॥ नैवेद्य ॥ ॥ ५ ॥ दिगंत तिमिरापहै मिहिर कोटि राशी प्रभैः प्रबोधनिकरैरिय स्फुरित दीप पनैः रन । अमेय० ॥ दीपम् ॥ ६ ॥ मिलिन्द मुख कारऔरगुरू संगधूपोद्भवै । रदभ्रगुरुधूपकै निचित सर्व काष्ठाम्बरैः ॥ अमेय० ॥ धृपम् ॥ ७ ॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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