________________
विर्यध निसंघ विरोप विदोष, विकाय बिमाय तिोष विशोष ।
सुरोग्ग नेत्रसदाकृतसेव, जयाभिसुनंदन तीर्थ सुदेव ॥ १ ॥ विरोग विभोग वियोग विदेह, विपुत्र विशत्र विट्ठ त्रिगेह ॥ सुरोरग. ॥ २ । विमंत्र धियंत्र वितंत्र विगंध, विरोध विशोध विरोध विरंध्र ॥ सुरोरग० ॥ ३ ॥ विनेत्र वि मित्र विशत्रु विदार, विमृत्यु विभृत्य विनृत्य विभार ॥ सुरोरग." ४ ॥ विचित्त विवित्त विपस्त्व विमोह विशंस चिदंश विवंश । सुरोरम० ॥ ५ ॥ विभास बिपास विदास विलोक, विकेश विदेश विवेश विशोक !। सुरोरग० ।६।। विदान विमान विपान विगीत, विधर्म विकर्म विशर्म विमीत ॥ सुरोरग० ॥ ७ ॥ धत्ता-अभिनंदन जिनवर, पुक्ति वधूवर, नाशित कर्म कलंक भर ॥ जयकीर्ति सुस्त्राकर, धर्मदयाघर, जय जय भवजल नीरतर ॥ महा ।।
ॐ श्री सुमति नाथ पूजा ® सुरवास समुद्भुदैस्तायैः कपूर यासितैः ।
हेमभृगार नालस्थैः पुमति प्रार्चयाम्यहं ॥ जलम् ॥ १ ॥ सुगन्धद्रव्यसम्मिश्रे, श्चन्दनैर्मजयोद्भधैः ।
मृगाक्षवास घृष्टैरच, सुमति ...|| चन्दनम् ॥ २ ॥ अक्ष शालि संभूत रूज्वलेश्चन्द्र संनिभैः ।।
सुशप्रात्तालितसार, सुमति.....|| अचतम् ॥ ३ ॥
-
११७०!