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तत्पश्चात् क्रम से श्री, हो, वृतिः कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी, तुष्टि, पुष्टि, इन 7ठ देवियों का आहवानन करके श्राठों को अलग २ अर्घ चढ़ावें । पश्चात् दिसर्जन करके पूजन में चढ़ाया हुआ द्रव्य श्रीफल सहित जलमें क्षेपण करदें तथा यन्त्र का अभिषेक करके चौकी (पाटा) पर विराजमान कर केशर पुष्प चढ़ावें । पश्चात् छने हुवे जल से घड़ों को साफ कर यन्त्र की साक्षीपूर्वक कलश भरें। पश्चात् कलशी के तिलक करके सभी कलशों में दूध, सर्करा (खड़ी साकर) रजत मुद्रा (चांदी का रुपया, अठन्नी. चवन्नी धादि) क्षेपण कर कलशों पर श्रीफल रख कर शुद्ध वस्त्रों से आच्छादित करे एवं पान रख कर सूत्र (लच्छे) से बांध कर कलशों को पुष्प माला पहिनावें। मुख्य कलश पर पांच या सात वजाए तथा दर्पण विशेष रूप से बांधे। पश्चात् कलश उठाने वाली इन्द्रारिणयों ( श्राविकाओं) के तिलक कर माला पहिनावे । पश्चात् एक अध्यं चड़ा कर श्राविकाओं को कलश दे देवें । समस्त श्राक गण आगे यन्त्रजो के साथ रहे। उनके पीछे सर्व प्रथम मुख्य कलश बालो श्राविका तथा उसके पीछे बाकी सब कलशों वाली बहिनें रहे। इस प्रकार पूर्ववत समारोहपूर्वक जिनेन्द्र भगवान जय ध्वनि पूचक मण्डप में पहुँच कर प्रतिष्ठाचार्य पुष्प तथा अक्षत से कलशों को बधाये पश्चान वेदी के पास विराजमान करे ।
॥ जल यात्रा विधि ॥ प्रथमं तडागे जल समीपे चतुष्पथे स्नपनं क्रियते पश्चाज्जल मध्ये धौत वस्त्र द्वाभ्यां पायें अधार्य मल मध्ये निमज्ज्य यंत्र' धौत मध्ये प्रक्षिप्य पूज्यते । प्रथम यंत्र मध्ये कर्णिका पूजा पश्चाई कीनां पूजा कर्तव्या ।