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________________ ६५॥ अजित जिनवरेंद्र पूजयाम्यदानैः सकल विमल वो भी याद्यांत कीर्तिः ॥ ॥ अर्ध ॥ || जयमाला ॥ त्रिगत मल कलंक, विष्टपेशं विशंकं, धृतं चरण सुभारं प्राप्त संसार पार इव मदन मदेभं स्वीकृतापेन्द्र शोभं, " केवल नयन विलोकित अजित विजित कर्माहि समूह बन्दे सुनुतसु सुर sararte भस्मी कृत कामं, शरणागत केवल विश्रामं विनमित सुरनाथं, कीर्तये लोक नाथं ॥ १ ॥ लोकं, ध्वस्त पापरिपु जनित कुशोकं नर व्यूहं ॥ rt ॥ प्रशम बाइक कठारं, निजम निर्जित परमत पोरं श्री जितशत्र महीपतिनुजं, विजयादेवी मोहित मनुजं गगनन्दोलित चामर वृन्दं शिरसि धृतच्छत्र र पधं । रत्नत्रय संयम शुभचित्तं मुक्ति वधूरल लिप्त सुचित्तं । [यजित सूर्य कोटि भामण्ड भासं दयाकलानिधिमिमलाकाशं I 1 ॥ २ ॥ श्रजिता ॥ ३ ॥ " अति० ॥ ४ ॥ [भजित० ॥ ५ ॥ व्यजित ॥ ६ ॥ ॥ ७ ॥ faa. | = |! वचनामृतवति गुणानं, मानस्तंभ दलित परमानं । चति ॥ ६ ॥ १६२
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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