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अजित जिनवरेंद्र पूजयाम्यदानैः
सकल विमल वो भी याद्यांत कीर्तिः ॥ ॥ अर्ध ॥ || जयमाला ॥
त्रिगत मल कलंक, विष्टपेशं विशंकं,
धृतं चरण सुभारं प्राप्त संसार पार
इव मदन मदेभं स्वीकृतापेन्द्र शोभं,
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केवल नयन विलोकित अजित विजित कर्माहि समूह बन्दे सुनुतसु सुर sararte भस्मी कृत कामं, शरणागत केवल विश्रामं
विनमित सुरनाथं, कीर्तये लोक नाथं ॥ १ ॥ लोकं, ध्वस्त पापरिपु जनित कुशोकं
नर व्यूहं
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प्रशम बाइक कठारं, निजम निर्जित परमत पोरं श्री जितशत्र महीपतिनुजं, विजयादेवी मोहित मनुजं गगनन्दोलित चामर वृन्दं शिरसि धृतच्छत्र र पधं । रत्नत्रय संयम शुभचित्तं मुक्ति वधूरल लिप्त सुचित्तं । [यजित सूर्य कोटि भामण्ड भासं दयाकलानिधिमिमलाकाशं
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॥ २ ॥
श्रजिता ॥ ३ ॥
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अति० ॥ ४ ॥
[भजित० ॥ ५ ॥ व्यजित ॥ ६ ॥
॥ ७ ॥
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वचनामृतवति गुणानं, मानस्तंभ दलित परमानं । चति ॥ ६ ॥
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