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________________ जनन मृत्यु नरामय हारिणा, परियजे ऽजितनाथमहं श्रियैः ॥ ज लम् ॥ प्रचुर कुकुम पंक विमिश्रित, मलय पर्वत संभव चन्दनः । विविधताप रै भुवनाधिपं, परियजे....... || चन्दनम् ॥ सुरभि शालिन दुल पुंजकैः कुमुद, बन्लमहार हिमोज्ज्वलैः मक राशनकारनाधिपं, परियजे....... ॥ अक्षतम् ॥ विकसिताब्ज सुकैरवमल्लिका, बाल चंपक मोगर पुष्पकैः ।। मधुर गंधसमाहृतपट्पदैः परियजे..... ॥ पुष्पम् ॥ कटक धेवर मोदक परिका; बहुल पायस गव्य बरोदनैः । नयनचित्तहरैमरैनः परियजे....... | नैवेद्यम् ॥ शशि दिवाकर घामसमानकैः, परमकांति तिरस्कृततामसैः ।। सुघनसारविनिर्मित दीपक परियजे ....... ॥ दोषम् ॥ अगुरू चूर्ण सु चनदन धूपकैः विगतघूमसु पावक संगतः ॥ सजन नीरद पंक्ति समानकैः, परियजे....... ॥ धूम्म् ॥ क्रमुक जंभल निम्बुक चोचकै, प्रमुख कानन मध्य समुद्भवैः ॥ सुरभिपक्व फलैनयन पियैः परियजे० ..... । फलं ॥ विमल सलिल धारा, गंधपुष्पावतोधैः, विविध चरूमिरूद्दीय धूपैः फलोः । ॥१६४॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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