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________________ A ११६३: 1 1 जयमाला • रिपम जिनेन्द्र गतभवनन्द्र', सुर नर पूजित पद कमलम् । मानाचा मुख शिस्टर, मनः सुसिद्धय गुण विमलम् ॥ १॥ भुषि पाप तमो भव बाल दिनं, भुत्रनत्रय पूजित षाद जिनं । वृषभं प्रणमामि जिनेन्द्रबरं, शिव सौख्य सुधारस पान करं । २ ॥ शतपंचक चापसु दीर्घ तनु, शुभ लक्षण हाटक वर्ण तनु । वृषभंत, ॥ ३ ॥ नृप नामि कुलाम्बर चन्द्रनिर्भ, मरू कुधि मसुद्भव रत्न विमं वृषभं ॥ ४ ॥ धन देव विनिर्मित कोष्ठसमं, जिनकांति विनिर्मित तिग्म विभं । वृषभ, .. ५ ॥ शत शक समचिंत पाद जं, रख भूमिनिपातितमानस । वृषमं० ॥ ६ ॥ वचनामृत सर्पित भव्य जनं, गगनांगर दुभिनाद धनं । वृषभं ॥ ७ ॥ निज दर्शन जीव कुवैरी हरं, शत योजन सौम्य सुभिक्षकरं । पृषभः ॥ ८ ॥ अतिमायिनमानव देव भरं, भुवनातिग संस्थित मुवितवरं । वृषमं. ॥ ६ ॥ पत्ता-जय वृषभ जिनेन्द्रं ध्वनिधन केन्द्र, जन्म जरान्तक मय हरणं ॥ त्रिभुवनमणि भूषं, गतपर दुषः जयकीर्ति विद्धि हि शरणम् ॥ १० ॥ ॥ श्री अजित नाथ पूजा ॥ त्रिपथगामृत सागर वारिया, सुरभिवस्तुसु शीतल कारिणा ।
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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