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________________ -१६२॥ गंधलुब्ध मधुपैः सुचन्दनैः कुकुमाच घनसार मिश्रितैः । कुंद चन्द्र कर हार शुभ्र, स्तन्दुखैः सुरभि शालि संभवै । देव मानव मुनीन्द्र सेवितम् - तीर्थ नाथ जन्म मृत्यु भवताप द्वारकैस्तीर्थमाथ वृषभ यजाम्यहं ॥ चन्दनम् । मालती कमल कुंद केतकी, पाटला बकुल चम्पकोदगमैः । काम क्रूजर निपात तोद्यतस्तीर्थ नाथ पायसाज्य घृत पक्व पूरिका, घेवरोदन सुशाकका न्त्रितैः पावनैश्चरुमिरिष्ट विद्धये, तीर्थनाथ कर्म काण्ड मोहतास हरैः शिखोज्ज्वलै-रचंद्रति घृत तेल निर्मितैः । दीपकै विमल वलीश्वरम् तीर्थनाथ दहने हुताशनं, चंदन | गुरुसुधूपधृकैः । गंध व्याप्त दश दिक्प्रदेशकै तीर्थ नाथ } मोच चोच कदलो माधवी पूगविर्मंट सुचतत्फलैः । नासिका नयन चित्त तोदे, तीर्थ नाथ 1 . अक्षतम् ॥ ॥ पुष्पम् ॥ ।। नैवेद्यम् ॥ ॥ दीपम् ॥ " धूयम् ॥ फलम् ॥ पानीय चन्दनवरोद्रगम तन्दुलो, नैवेद्य दीप शुभ धूप फलार्घ पादैः ॥ सं पूजयामि वृषभं जित मोह मल्लं श्री नाभिराज तनुजं जयकीर्ति धारम् || अ॥ २।१६२ ।
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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