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________________ ६१ येषां संग समुद्र मुद् गठमाघाताचसंपूर्णितो. बंघो भूरि नरादि कालनिचिने सुत्कर्मणां क्लेशदे । तेभ्यो भन्यजना वयोधन चराः सप्तर्षि संज्ञाभृतो । नित्यं पुत्र कक्षत्र धान्य धनदा कुर्वतु वोमंगलं । इत्यापिर्वाद ॥ ॥ श्री अनंत व्रत पूजन विधान ॥ प्रणिपण मशाहीरं, हो ना नि : ___ अनंत व्रततत्वस्या, नंत सौख्यस्य सिद्धये ॥ १ ॥ पर्दशं तीर्थकरेषुबंध, समायाम्यत्र जिनेन्द्रवर्य । अनंतनाथ जित मोह मारं, चतुष्टयानंत विभूषितागं ॥२॥ ॐ ह्रीं श्री रिषभ नाथ तीर्थ कर अत्र अवतर अनतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री रिपम नाथ तीर्थ कर अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ॐ ह्रीं श्री रिपम नाथ तीर्थ कर अब सम सन्निहितो भव भव अषट् । ( ऊपर का श्लोक पढ़ कर इसी प्रकार चौदहों पुजाओं में अलग २ भगवान की स्थापना करे ) ॥ अनंत यंत्र स्थापित करे ॥ देव सिन्धु यमुनादि सज्जतः सुरमिवस्तु मिश्रितः । पानरमृतसौख्यदायकम् तीर्थ नाथ वृषभं यजाम्यहं । जलम् । ॥१६॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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