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________________ १६०॥ ॐ सर्व सुन्दर ऋषये नमः। ॐही जयवान् ऋषये नमः। ॐ ह्रीं विनयलालस ऋषये नमः । ॐ हीं जयमित्र ऋषये नमः ॥ एभि मंत्र जाप्यं कुर्याचंचापि समुद्धरेत् ॥ ( स प्रकार ७ जाप्य देकर अर्घ चढ़ावे ) ॥ जयमाला ॥ ऋषिनिकर महं सारं, नाकेश्वर सकल सौख्य दातारं । ईज्ययति गुण हारं, निर्मलध्यानाग्नि दहति संसारं ॥ १ ॥ अयमनिराश, जित चित्तदोपातकर्मपाश । ___ जय जयनिष्काम, संयत मुस्मन्यु सुसौल्य धाम । २॥ भावित सुभाव, निर्वाशित पीन समेश्वराव । श्री मन्युदेर, जयविहित दविश्वरस्ववर सेव । ३॥ श्रीनिचयनोसि, सुखदातानि मलगततमामि । नष्टानियेही, जय बोधिसतो मे देवदेही । ४ ॥ निखिलनतोसिः लोकैर्भवया जय तब तपसि । जनतापहानि, सर्भदिसुन्दर सौख्यदानी ॥ ५ ।। चारित्रनीर, विद्यापितकामानल सुधीर । जयवान 'पोश, जयमोह नाम दिपनाग विष ॥ ६ ॥ दुर्गोपसर्ग, दूरीकृत तर्पितमश्यवर्ग । तत्वार्थ भाव, बैनयलालम ज्य निरभिलाष ॥ ७ ॥ ज्ञानोध गेह वरचारणदिभूषित स्वदेह । नठोरोग, जय जय जय मित्र सुत्यक्त भोग । = ॥ वत्ता इति जयमाला, भक्ति विशाला, येक्टंति भरियणनगः । ते सविसुखसक्ता, गुण गण रक्ता, यातिसुख बहु विघ्नहराः ।। महाई ।। ॥१६॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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