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________________ ना५५७I ॥ अथ प्रत्येक पूजा ॥ श्री सत्सुचारित्र विभूषितंय, तपोनुभावावत व्योममान । भत्र संख्यकानां समाह्वयेत सुरमन्यु संज्ञ! ॐ सुरमन्यूषे अनावतरातर संघौषट् । श्रन्न तिष्ठ तिष्ठ उ उ. यापन । अत्र मम सन्निहितोमव २ वषट् सन्निधिकरणम् । ॐ ह्रीं सुरमन्यु ऋषये अलम् । गंध, इत्यादि सर्वत्र प्रयोज्यं ॥ इस प्रकार ही इत्यादि मन्त्र पढ़कर अलग २ आठो द्रव्य चढ़ावे । एवं आगे भी इसी प्रकार सातों ऋषियों की अलग २ स्थापना कर के मन्त्र पढ़ कर आठों द्रव्य बढ़ावे । नैकद्यतो यस्य भूव लोको, निरामय सत्यतपोधनस्य । ___ श्रीमन्यु रियाख्य तथा द्वितीय, तमाह्वये शांति करं नराणम् !! ॐ ह्रीं श्रीमन्य ऋपये अनावतरबतर इत्यादिना स्थापनं । ॐ ह्रीं श्रीमन्यु ऋषये जलं इत्यादि । ध्यानाग्निदग्धाऽशुभकर्मकक्ष, नि: संगवृत्त हुशील पात्र। प्रान बुधानां सुखदं प्रजाया, आरोग्यये भीनिचयं तृतीयं ॥ ॐ ह्रीं श्री निचय ऋये आत्रावतरावसरेत्यादिना स्थापनं । ॐ हीं श्री निचय ऋषये जलाभित्यावश्यक देयं ।। ११५
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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