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________________ - ११५२|| -- कलय कलय वृत्त पश्य पश्य स्वरूपं । कुरु कुरू पुरुषार्थ निवृतानन्द हेतोः ॥ ७ ॥ इत्याशीर्वादः । ॐ जयमाला * पत्ता-यणत्तय सारउ, भव्य पियारउ, सयलह जीवह दुरियहरो । मणियण गण महियउ, गुण गण सहियउ, मिच्छमोह मपणास करो ।। १ ।। पणवीस दोस वजिउ पवितु, अइयार रहिउ वसुगुण विजुत्त । ___ अढगई णिम्मल विष्फरंति , जो तिरहं देवत्तण विलिंवि ॥ २॥ णारइयवि तिस्थयरा इदंति देव वि ए इन्दिय पर लहति । __जे मिच्छनिय सम्मत्त हीण, दालिद्दय सिय ते धणीण . ३ ॥ मइ सुय अवही एणपज्जयाण, केवलु वि कहिज्जइ मधयाण । ___ अण्णाणे तिएणइ भण: जोइ, कुच्छिप मिच्छत्त जई होह । ४ ॥ वोभुव हिम्मल पवणुवि असंग, परि अजिउ विकण पर मुक्ति संग । लोया लोहाविजयउ रि. योइ बहु भयह जउ चारित्त होइ । ५ ॥ पंचाइ महन्वय सभिदि पंच, गुण्णाउ तिणि पय जिय अवन । पुण पचायार तिभेय जुन, मुखि धम्म कहहि देविषद युत्त ॥ ६ ॥ पत्ता-जिहिं तिपरिण लिएर चिरू, गहणमुणे मुइ, अधउ आलस उपगुलपि । ___ जिणवर भारियः तिषण तरह विणु, मुत्तिण भएणड गण पह वि : महाई. ।' %D ॥१५॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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