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________________ संसार दुख ज्वलनावगूढ, अढ संतापमलोप शायै । सदर्शनज्ञान चरित्र पंक्तेजल यधारा पुरतो ददामि ॥ जलं ॥ १ ॥ रत्नत्रयं भूषित भव्य लोक, मशोकमन्तर्गत भावगम्यं । काश्मीरकपूरसुचन्दन चै ,, सुगन्धिगन्धैरहम यामि || चन्दनम् ।। २ ।। श्रार्या छन्दः-अक्षतमक्षत पुर्जर, शालयैः शुद्ध गन्धिभिः शुद्ध । दर्शन बोध चरित्र त्रितयं तन्मय ने भक्तथा ॥ अक्षतं ।। ३ ।" उद्गताच्छन्दः - विकसित कु द कुसुम शत पत्र जात समूह शोभया, धन कर, नीर शुभ चन्दन, चर्षित चारु गंधया । अलिकुल रणित कलित मधुर ध्वनि, श्याम समूह रसालया। सुकलितमातनौमि रत्नत्रय, मा पवित्र मालया ।। पुष्पं ॥ ४ ॥ इन्द्रवज्ञा–प्रसिद्ध रुद्रव्यमनन्य लभ्यं, यचो गुरुग्णामिव साधुसिद्ध । रुदृष्टि सोध चरित्र रत्न, प्रयाय नवेद्य महं ददामि ॥ नैवेद्यम् । ५ ॥ दीपः सुकपूर पराग भृगैरंगद्भिांगद्य ति दीप्यमानैः ।। गद्दष्टि सोध चरित्र गरम, त्रयं त्रयागतिकरं यजामि ।। दीपम् ॥ ६ ॥ श्रार्याछन्दः-धूपैः कालागुरुभि. शुिद्ध संशुद्ध कर्म संधूपैः । दर्शन बोध चरित्र विवयं संधूच्यामि सं शुद्धय धूपं ॥ ७ ॥ इन्द्रयच!-पूगैरनयर नारिकेलैः, नारंग जम्बीर कपित्थ पुजः । रत्नत्रयं तर्यित भव्य लोक, शक्पारलोकं तदहं यजामि ।। फलं ।। ८ ।। ।
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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