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________________ ॥ पश्चिम दिशि पूजा ॥ (घसंत तिलका वृत्तम् ) नन्दीश्वरे वरुण दिग्गत कम्जलाद्रि, मुख्य त्रयोदश निरिस्थित चैत्य पंक्तिः ___ संस्थापयामि शुचि कार्तिक फाल्गुणोरु शुक्लाष्टमो भृति सदिवसाष्ट कान्तम् ॥ ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपे पश्चिम दिशिस्थितांजन गिर्यादि त्रयोदश चैन्यालयस्थापनार्थ पुष्पांजलि लिपेत् ॥ (इन्द्रदत्रा) सुराएगा तीर्थः अलैः सुगन्धः, काश्मीर कपूर पराग मिः ।। प्रतीच्य शुभ्रा दिशि खीन्दु संख्या, गस्यालयाथान जिन पायायैः ।. जलम् ।। सुगंधीकारमीर रमोध पीतैः, श्री चन्दनगहत षट्पदोषैः । प्रतीच्य० ।। चन्दनं ।। तुषार हारेन्दु निभैरखंडः, सचंदुलैन्यकृत मौक्ति कौघैः ॥ प्रसीच्य० ॥ अवतम् ॥ मंदार कुन्दाज दंब पुष्पै गेलंय गजीकृन्मौक्तिकौथैः ।। प्रतीच्य० ।। युष्पम् ॥ गांगेय पात्र निहितरनिध:, पकवान शाल्योदन सूप शाकः ॥ प्रतीच्य० ॥ नैवेद्यम् । जगत्त्रयघान्त विन श दवैः, दीपैर्लसन् कांचन पावसंस्थः ॥ प्रतीच्य • ॥ दीपम् ।। सुगंधि काला गुरु धूप गंधै ठामोदिताशाखिल खेचरास्यैः । प्रतीच्य० ॥ धूपम् ॥ रसाल मोचामल मालिग जबीर राजःइन नालिकरैः प्रतीच्य० ॥ फलम् ॥ ॥१२॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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