SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - -- - ॥ जयमाला ॥ २३ ( शार्दूल विक्रिड़ित छन्द) विस्तीर्णा शत योजनः स्थिर रास्तदृक्षिणे चोत्तरे । पूर्व पश्चिम भाग एवं ममलं व्यासं तदर्ध श्रिताः । उच्ः योजन पंचसभिरभोजादि विचित्रान्विता । स्तान्सेवे किल मति यत्र सुभगाः सर्वज्ञ चैत्यालयाः ॥ १ ॥ (विद्युन्माला ) अष्टोत्तरसत श्रृंगारोध, गांगेय यमनध माण संघ । नन्दीश्वर यम दिशि नगराज, सेवे धृत जिन वसति समाज ॥ २ ॥ तत वितत शुपिरधनयुत तालं, पूर्व स्थानित सर्व विशालं । नन्दीश्व० ॥ ३ ॥ उत्तम मणि नः कनक कुभ, पूर्व गुणान्वित कृत चै शौम । नन्दीरक्ष. ॥ ४ ॥ वातान्दोलित केतु व्रातं, दर्शन मात्र विदर्शित सांतं । नन्दीश्वः ॥ ५ ॥ कुंभसु शोभा भर सु प्रतीक, मोहित किन्नर देवानीकं । नन्दीश्व० ॥ ६ ॥ कां वन दंड सुशोभित छ, तेजो निर्जिन करव मित्र' ॥ नन्दीश्व. ।। ७ ।। अनघरस्न युत दर्पण स्तूपं, विम्बित देव नरोरग रुपं ॥ नन्दीश्व० ॥ ८ ॥ मलना विजिव सु चामर मालं गंगा बीचि समुज्जल बालं ॥ नन्दीश्व० ॥ ६ ॥ भंगारा द्यष्टभिद्रव्यैरष्टोत्तर शतै युताः । एभिश्चैयालयानध्यैर्हतामये मुदा ॥ ॥ अर्घम । १२३॥ ARRIAN -
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy