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________________ २१८ ! | गाथा - कंमाल ताल तिवली, मल्लर भर भेरि वेणु त्रियायो । पज्जेति भाव सहिया, भव्वेहिं उज्जिया सच्चे ॥ १२ ॥ छन्द-सव दव्वेहिं भवेहिं करवादियं, सह संझिग झिगण सिद्धाडयं । भिगिनिजं भिगिनिजं वज्जये झम्लरी, सच्चये इंद इंदायणी सुंदरी ॥ १३ ॥ गायब कब्जल सलायामयं दिण्यं, हेम हीरालपंडले कंकणं : दिये गोबरं, विराध भारतियं जोइयं सुंदरं ॥ १४ ॥ figure गुलिय दावेतिया, खियहिं खिय खयहिं जिस विम्व जोइत्तियः । पारि सच्चति गायंति कोइल सुरं, जणुघारतियं ओइयं सुंदरं १५ ॥ रुणुझुणं कारणेवरच कर कंकण, थाइ जंपति जिला हवे बहुगुणं । I जुब च्वंति सुपरति ग उ खिय घरं, जिशा चारतियं जोड़यं सुंदरं ॥ १६ ॥ कंठ कइलो मणिहार फुल्ल, जिड़ थुइ घुई सोगार संतु fafe कोऊल स्यहि गरी एरं जिव भारतिये जोइयं सुंदरं ।। १७ । पत्ता:- भारतिय जे वह उम्र धोवइ, सम्गावग्ग हलहु लहर | ॐ अं मण भावद्द तं सुह पावह, दीष्णु वि भासुरण मारणइ ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्व द्वीपे द्विपंचाशजिनालयेभ्यो श्र 1: ।। १६ ।। •• TIPPS
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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