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ध्वस्तांधकारनिकरैः कनकावदात दोष: प्रदीपित समस्त दिगन्तरालैः || नन्दी || दीपम् धूपै रमन्दवर सौरभ बाल गुंजद, मृगाकुलैरगुरु चन्दन चन्द्रमिश्रः । नन्दीश्व || धृ कादाडिम मनोहर मातुलिंग, जाती फल प्रभृति सौरभ सत्फलाद्यः ॥ नदीश्व ॥ फलम् ॥ द्वीपे नन्दीश्वरेस्मिन् विविधमषिमा क्रान्तकान्ताङ्ग कान्ति |
प्राग्भारप्राप्त चन्द्रद्युतिकर निकर ध्वस्त मिथ्यान्धकारम् ॥
चैत्यं चैत्यालयांश्चोज्वल कुसुम फलाद्यैरनिन्द्य प्रभावै ।
भक्त्यायेभ्यर्चयन्ति स्फुटमसम सुखरं ते लभन्ते त्रिमुक्तिम्
अर्घ्यम् ।
|| जयमाला ||
आर्या- कम्पिल्ला गवरी मन्दणस्स विमलस्स मिलणारस । आरतियवर सप्रये, राच्चति अमर
|| छन्द ||
अमर रमणीयच्चेति जिर्णमंदिरं, विविध बर ताल तेरहिं संगमपुरं ।
रमणीयो
रुडंकारणे वरघचल गुडिया, मोतिया दामवच्छच्छले संठिया |
1 १ ॥
जयि पहु रयण चामीयरं यत्तयं, जोइयं सुन्दरं जिस आरनियं ॥ २ ॥
गीय गावंति राच्चति जिशमंदिर, जोइयं तुन्दर जिराव आरतियं ॥ ३ ॥
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