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________________ १५ जिखेवरु बस मंगल संयसारू, ति ईसर मुत्ति रमणि गलि हरु जिणेसर जे पुष्पांजलि देई सो सामय सुक्खु श्रखंतु लहेई || १३ | धत्ता-सुरनर विज्जाहर, होति मणोदर ते सग्गि सुरेसर, पुहवि गरेसर, पुष्पांजलि विधि जे काहिं मक्ख महा पुरि संचरहि I ।। इति पुष्पांजलि पूजा समाप्तम् ॥ * अथ अष्टाह्निका पूजा 1 ॥ १७ ॥ पूर्णार्थम् । द्वीपेऽपि नन्दीश्वर [संज्ञकेहि, मिनि मुख संस्थान् । जिनेन्द्र गेहान् मणि हेम मूर्ति, द्विपन्च संख्या सहितानमामि ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं नन्दीश्वर दीपे द्विपन्चाशज्जिनासस्थ प्रतिमा समूह यत्र अवतर अवतर संवापट् । यत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । अत्र मम सन्निहितो मन भव वषट् ॥ कर्पूर पूर परिवृति भूरि नीर, धारामिरामिरमितः श्रम हारिणीभिः ।। : नन्दीश्वराष्ट्र दिवसानि जिनाधिपाना मानन्दतः प्रतिकृर्ति परिपूजयामि ॥ जलम् ।। हृद् घ्राण तर्पण परैः परि वर्ष सबै र्गन्धैः सुचन्दन रसैर्धन कुङ्कुमः । नन्दीश्व || चन्दनम् ॥ उन्निन्द्र चन्द्र विलसत्किरणावदातैः सत्कुन्द कोर कमिभैः कलमानतो नन्दीश्व ॥ श्रतं ॥ मंदार चारू हरिचन्दन पारिजात संतान भूरुह भवैः कुसुमैविचित्रः ॥ नन्दीश्व | पुष्पम् ॥ सिद्ध शुद्ध व माजनस्थैः पीयूष मिष्ट ललितैश्वरुभिर्विचित्रैः ॥ नन्दीश्व । नैवेद्यन् "
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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