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________________ १४|| सु कुज्जय हुल्लहिं व अलेउ, रतुष्पलि संति जिरणेसर देउ । बगच मुक्थु सुप्रज्जब कुंदि, जिणेसर जासु वणहि अरु यदि ॥ ७ ॥ बहुविहि मालहिं मन्लि चयारि, सु बउलहि मुणिसुन्धय तिउगरि । ___ सु सुजल आयीचा मि यायः करंजलि होमि जिणह मुणाय : ८ ॥ फणा मणि मंडिउ पास जिणंदु, चड़ावहि बहुविहि वर मचकुंदु । जुदेव दुलहु र कणवीरू, सु लेवि जिणेपरु पुजनहु बीरू || ६ ॥ जि ईच्छहिं सासय सुक्खु अतुल्लु, ति इणि परि जिगह चदापहि फुल्लु | जी भावण वितर जोइसी कपि, पुष्पांजलि ताह जिरणेसर अपि ।। १० । जे मेरू हि श्रमिय जिणेसर संति, ति बनी विस जिजेगमदति । कुल गिरि तीम्र अभिट्टिम देव, चखारह असीयहं कियसुर सेकं ॥ ११ ॥ विहिहि सत्तरि सउ जिणगेः कुरुमि जिर्णदह गयभवणेह ।। जे कुंजल पवयण जिण चचारि, रुजय गिरि चारि जिणेह च्यारि । १२ ॥ चयारि "बिईगा रव जगचंद, मणोतरि तेतिय जाणि जिणंद ।। जे संठीय दौसरी बावरण, ति सासु सहु महु देउ पमण ॥ १३ ॥ अठाइयहिबहिं विहिमि माद, पएणारम कम्प्रय भूमि जिद । अकित्तिम क्रित्तिम जे जिण गेहु, पुष्पांजलि ताहं जिग्गेमर देहु ॥ १४ ॥ यमुसइ भाष मुग्लिसर चंदु अभवमणि माधव गांदि मुणिन्दु । अकिचिम कित्तिम जे सुक्कोत्ति, ति पानिहु विमल पयासि विभत्ति ।। १५ ।
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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