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________________ ११३: वास्तछंद - चउणी काय चणीकाय मिलिय सुर वरहिं । कैलास पञय सिहरे, रहे आसिजे जिण बरगीय मंगल रवे करहि परेमा वैजा विरु कहिय पन्भावई सुरसरा I मा कुसुमांजलि लेवि करि जिस चौबीसह दिए 13 सु दिमि दिमि मद्दल करड कंसाल, सुविविलिय भन्दरी मेरी सालं । सुगेव विलंबा देई सुरसती, सुखच्चाहिं किरायर सुरार पत्ती ॥ १ ॥ जलंमि सुचंद अक्व सारु, सु फुल्ल चरुमिय दीवय फारु । सुगंधय धूव विचिच फलोह, पुष्पांजलि खिम्मल दिएण समोहं ॥ २ ॥ रिसिसर केवल गाण पचासु सु पुज्ज्हु संतारिणहि दुहणासु । अणोरम जाई हि अतिउ जिणंद, सेवंविहि संभव देव श्रदु ॥ ३ ॥ पचहू अहिलंद दवणेहिं, शिवालिय सुमइ हिं पूज रहीं । पफुल्लाह पउप्पहु परमेहिं, सुपास सुरु वररोहिं रिंजणु सासय श्राख विवासु, सु चम्पय चंद्रप ससिभामु सुवियलदि सुविहि जिणंदु वाहु सुपरिमण पाडल सीयल सुहंकरू वर मंदारि, तु पुज्जहु बासु पुज्न कचारि । सेयंमु सु कितिहि खिम्मलू विमलू कर्यवि, श्रणंतु असोयहि सिद्ध कियंचि ॥ ६ ॥ पर्याय T पुत्रखु पुज्जउ कंठिय हु F !! ४ । ११३
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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