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वास्तछंद - चउणी काय चणीकाय मिलिय सुर वरहिं ।
कैलास पञय सिहरे, रहे आसिजे जिण बरगीय मंगल रवे करहि
परेमा वैजा विरु कहिय पन्भावई सुरसरा I
मा कुसुमांजलि लेवि करि जिस चौबीसह दिए 13 सु दिमि दिमि मद्दल करड कंसाल, सुविविलिय भन्दरी मेरी सालं । सुगेव विलंबा देई सुरसती, सुखच्चाहिं किरायर सुरार पत्ती ॥ १ ॥ जलंमि सुचंद अक्व सारु, सु फुल्ल चरुमिय दीवय फारु ।
सुगंधय धूव विचिच फलोह, पुष्पांजलि खिम्मल दिएण समोहं ॥ २ ॥ रिसिसर केवल गाण पचासु सु पुज्ज्हु संतारिणहि दुहणासु ।
अणोरम जाई हि अतिउ जिणंद, सेवंविहि संभव देव श्रदु ॥ ३ ॥ पचहू अहिलंद दवणेहिं, शिवालिय सुमइ हिं पूज रहीं । पफुल्लाह पउप्पहु परमेहिं, सुपास सुरु वररोहिं रिंजणु सासय श्राख विवासु, सु चम्पय चंद्रप ससिभामु सुवियलदि सुविहि जिणंदु वाहु सुपरिमण पाडल सीयल सुहंकरू वर मंदारि, तु पुज्जहु बासु पुज्न कचारि ।
सेयंमु
सु कितिहि खिम्मलू विमलू कर्यवि, श्रणंतु असोयहि सिद्ध कियंचि ॥ ६ ॥
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पुत्रखु पुज्जउ कंठिय
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