________________
११२॥
ॐ ह्रीं पंचमेरूस्थ प्रतिमाभ्यो मत्र मम सभिहितो भव २ वषट् । संन्निधापनं ॥
सन्मान
जलादिभिश्च ।
पुष्पांजलि यंत्र स्थापनम् ॥ योग्यान्, सद्भाव समर्चयत्पंच दिनानि भक्त्या ॥ ६ ॥ जलं ॥ कुकुमार्थ, गंधैः सुगन्धी
कृत दिविभागः I
स्थानान्मुनयं प्रतिपति पुष्पाञ्जलिर्भाद्रपदादि मासे, श्रीखंड कपूर
पुष्पांजलि भाद्र० । चन्दनम् ॥
शान्यच रक्षत दीर्घमात्र,
मुनिर्मलैश्चंद्र करावदातैः । पुष्पांजलिः ॥ अचतं ॥ भोज नीलोत्पल पारिजातैः कदंब कुंदादि पर प्रसूनैः ॥ पुष्पांजलि ॥ पुष्यं
小
0
नैवेद्य कः कांचन रत्न पात्र : यस्तै रुदस्तै हरिणा मुहस्तैः ॥ पुष्पांजलि● ॥ नैवेद्यम् ॥ दीपोस्त तमोभिघातैरुद्योदिता शेष पदार्थ जातैः " पुष्पांजलि० ॥ दीपम् ॥ तरुव्य कृष्णागुरु, दनायें संचूर्ण जैरूचम धूप वर्गेः " पुष्पांजलि ॥ धूम् ।। लंबिंग नारिंग कवित्पूगै: श्री मोच चोचादिकलैः पवित्रः ॥ पुष्पांजजि० । फलम् ॥ श्रीखंड कर्पूर सुगंध बामिः फलैश्च पुष्पाक्षत धृषनाद्य पुष्पांजलि भाद्रपदादिमा से, समचयेत्यंच दिनानि भक्त्या || अ T
"
|| जयमाला ॥
पत्ता-विधि सुपरउ, कंचय क्राउ, रिसिह ग्राह शिज्जिय अगि धम्म पयास, कम्मविश्वास, असुरा सुर नर थुय बल । १ ॥
मयखु
i
।।११२३