SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १११० पुष्पाजलि क्षेपणकर नमस्कार करे एवं नीचे के मेरू की प्रतिमाजी को उत्थापन कर वेदो पर विराजमान करे । इसी प्रकार ऊपर के मेरू की भी अलग २ निधिकर ( अर्ध चढ़ाना, आरती उतरना, आशीर्वाद व नमस्कार करके ) पांचों मेरु की प्रतिमाजी उत्थापन करे 1 कनक प्राइथनाभाजिनः । जम्बू वात कि पुष्करार्द्ध' वसुधा, क्षेत्रत्रये ये भवा रचन्द्राम्भोज शिखडि कल्ट सम्यग्ज्ञान चरित्र लक्षणधरा दरवाष्टधाना भूतानागढ बर्तमान समये तेभ्यो निभ्यो नमः उपवति हो । ऊपर का श्लोक पढ़कर पुष्पांजलि क्षेपण करे पश्चात् मेरुजी उत्थापन कर यथेष्ट स्थान में रखदे । ॥ इति मेरू उत्थापन विधि ॥ * पुष्पाञ्जलि पूजा * श्रादौ दर्शन यो मेरू विनयोप्यचल स्थितः चतुर्थो मंदिरो नाम विद्युन्माशी सु पंचमः FI 11 ॐ ह्रीं पंचमेरूस्थ प्रतिमाभ्यो अत्र अवतर २ ॐ ह्रीं पंचमेरूस्थ प्रतिमाभ्यो यत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ वषट् श्राननं ॥ स्वाहा, प्रक्षिष्ठापनं ॥ tal १११५
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy