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पुष्पाजलि क्षेपणकर नमस्कार करे एवं नीचे के मेरू की प्रतिमाजी को उत्थापन कर वेदो पर विराजमान करे । इसी प्रकार ऊपर के मेरू की भी अलग २ निधिकर ( अर्ध चढ़ाना, आरती उतरना, आशीर्वाद व नमस्कार करके ) पांचों मेरु की प्रतिमाजी उत्थापन करे
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कनक प्राइथनाभाजिनः ।
जम्बू वात कि पुष्करार्द्ध' वसुधा, क्षेत्रत्रये ये भवा रचन्द्राम्भोज शिखडि कल्ट सम्यग्ज्ञान चरित्र लक्षणधरा दरवाष्टधाना भूतानागढ बर्तमान समये तेभ्यो निभ्यो नमः
उपवति हो ।
ऊपर का श्लोक पढ़कर पुष्पांजलि क्षेपण करे पश्चात् मेरुजी उत्थापन कर यथेष्ट स्थान में रखदे ।
॥ इति मेरू उत्थापन विधि ॥
* पुष्पाञ्जलि पूजा *
श्रादौ दर्शन यो मेरू विनयोप्यचल स्थितः चतुर्थो मंदिरो नाम विद्युन्माशी सु पंचमः FI
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ॐ ह्रीं पंचमेरूस्थ प्रतिमाभ्यो अत्र अवतर २ ॐ ह्रीं पंचमेरूस्थ प्रतिमाभ्यो यत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ
वषट् श्राननं ॥ स्वाहा, प्रक्षिष्ठापनं ॥
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