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सकल मे जिनालय वासिनो, गगन वेदषडाष्टमिताजनाः । ददतु शर्म निरंतरमव्ययं, सकल भव्य जनेम्य इद्यार्चिताः ॥
॥ इत्याशीर्वादः ।। ( इति पुष्पाञ्जलि विधानम) ॥ पन्च मेरु उत्थापन विधि ।
( यह विधि खास नर गुजरात प्रान्त में प्रचलित है) भाद्रपद शुक्ला नवमी के दिन पूजनादि निया हो जाने के पश्चात् निम्न विधि पूर्वक मेरु उत्थापन करे । सर्व प्रथम निम्न पाठ पढ़ते हुने नीचे से लगाकर ऊपर तक एक एक मेरु को हाथ लगावे ( स्पर्श कर आशीर्वाद ले) १ पन्च मेरु, २ दाई द्वीप ३ एक सौ सित्तर क्षेत्र ५ अस्सी चैत्यालय ५ पबमावती माता कहती हैं, शासन देदी सुनती हैं यहां करे तो वहां पावे वहां करे सो यहां पावे ।
सलिल चन्दन पुष्प शुभाक्षतैश्चर सुदीपमुभूपफलायकैः । धवल मंगल गान रबाकुलैः जिनगृहे जिननाथमहं यजे ॥
ॐ ही सुदर्शन मेरुस्थ जिन प्रतिमा-पो अध्यम् ॥ ऊरर का श्लोक पढ़ कर अयं चढ़ावे एवं भारती उतार कर निम्न आशीर्वाद पढ़े । पांचा मेरु असी जिनधाम, सब प्रतिमा को करु' प्रणाम ।।
महासुख होय, महा सुख होय, देखे नाथ परसुख होय ॥१॥
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