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________________ १०८ ✰✰ atra from किंकणी नादं अभिनव बहुतर निर्मल दीपम् काखा गुरू भाव घट वरधूपं निर्मल तुल मौक्तिकमालं दशविध नाना केतन मालं । भव्य मुख निर्गत खाधुवाद। चित्र विचित्रित] तोरण बालं, विविध खनचित चंदनमालं । सुरभि समुज्नल चामर वार, चैत्यवृच बहुधा सुखकार | अष्टोत्तरशत हाटक कुस, तावत्परिमित दर्पण लभं ॥ पीठोपविष्ट जिनवर देवं, सफल लोक बिरली कृतमोहं मामण्डल मंडित जिन देहं भविक लोक विरली कृतमोह। योगीश्वर सुविहित अनुयोगं तदुपदेश बीतनुकृत भोगं । पुष्पांजलि विद्यागत शत्रू वदनुशांगत बरसु चक्र ॥ भाद्र शुक्ल तर पंचम घसे, समरूप चतुर्विध रसे त्रिसंध्यं विहित सकल पर्यं सोत्र सु आयाचित परिवर्य ॥ 7 J पंचसु पंचसु पंचसु पंचसु पंचसु पंचसु पंचसु पंचसु पंचसु पंचसु | पंचसु पंचसु ॥ १८ ॥ ॥ १६ ॥ ॥ २० ॥ ॥ २१ ॥ २२ ॥ ॥ २३ ॥ ॥ २४ ॥ ॥ २५ ॥ ॥ २६ ॥ । २७ ॥ ॥ २८ ॥ २६ ॥ काष्ठा संघ पुरंदराद्रि महितान् श्री मेरू चैत्यालयान अर्ह द्विम्ब विराजितान् बहुतरान श्री भूषणालंकृतान् ॥ चन्दनाचत शुभैः नैवेद्य दीपैर्वर: फलैर्महामि महतः श्री चन्द्रकीर्तित्सदा ॥ ३० ॥ तीर्थ मोवर पूपैः अर्धम् ॥ 11201
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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