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॥ अथ द्वितीय जयमाला ॥ सुरनर पति वंद्य, नाग नागेन्द्र वंश', सकल भरिक सेव्यं, नतिकं नर्तिकीमिः ।
जनन जलधि पोतं, पापतापापहारं ,
जिन वर वर चैत्यं, स्तौमिकर्मारि हान्यः ।। चन्दौं नाग भुश्न जिन दाख, कोड़ी वि सात बहत्तर लाख ।
व्यंवर ज्योतिष के जिन गेह, असंख्य भक्यिण वन्दौ तेह ॥ १॥ लाख चौरासी सचाणु सहस, तेविसह वन्दो स्वर्ग निवास ।
मेरू सुदर्शन मध्यह लोक, विजया चल दोये गत शोक ॥ २ ॥ मेरू चतुर्थह मंदिर नाम, विद्युन्माली छे जिन धाम ।।
पंथह मेरू असी जिन गेह भवियण वन्दौं पूर्जी तेह ॥ ३ ॥ षट् कुल जिनवर मेह छत्तीस, विजयारध सत्तर सुईश ॥
सहस्र कूट कन्दौं जिन देव, सीता सीतोदा करू कंट सेव ॥ ४ ॥ अष्टापद बन्दौं जिनतार, आदि जिनेश्वर गय भव पार
धील जिनेश्वर पूनी संत, सम्मेदाचल मुक्ति लहंत ॥ ५ ॥ वायुपूज्य चम्पापुरी देध, वर्षमान पावापुरी सेब
गिरनारी के नेमि जिनद, पनौं भवियण परमानंद ॥ ६ ॥
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