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विमल कमल धारा, गंध शाल्य क्षतोषैः
विविध कुसुम हव्यैर्दीप धूपैः फलोपैः । अखिल परममेरू दिविस्थवान् चैत्य शिम्पान्,
___परचर इह म श्री भूपणाश्चंद्रकीर्तिन् । अयम् ॥ .
ॐ अथ जयमाला आनंदामृत संरूपं, चिदानंद सदोदयं ।
नामरेन्द्र संसेच, सर्वज्ञ संस्तुवे मुदा ॥ १ ॥ शक गणे: कृस पूजन मष्ट विधंसुतरं, गर्म कलंक विमुक्त मनूपम सौख्य फर. ।
श्री जिन विम्य, गणं प्रयजे. चिर पार हरं, धर्म सुर द्रुम वर्धन पुष्कर वारि धरं ॥२॥ केवल लोचन दर्शित सुन्दर मक्ति पथं, पंचमगत्युपसर्पण सत्वर धर्म स्थं ॥ श्रीजिन० ३ ॥ दुर्गतिदुःख तमोभर भंजन भानु मरं, जन्म नरांतक वर्जित किचिन पं हरं ॥ श्रीजिन० ४ ॥ शुद्ध नयाश्रित तत्व प्रकाशन सूरतरं, जन्म पयो निधि शोपण कुंभ भवं प्रवरं ॥ श्री जिन.५ ॥ श्री आदि विवर्जित मूर्ति मखंडित लक्ष्मी कर, अन्तविवर्जित रूपमनंत सुबोध धरं ॥ श्रीजिन० ६ ॥ विधाय पूजां जिन नायकस्य, शक्रोधि भक्तया गिरिराज मूर्छिन ।
श्री भूषणं मुक्ति पद प्रदेयात् सुखाधिकं ज्ञान पयोथि धम्पम् ॥ अय॑म् ।।
॥१२॥