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शुभ मन्दिर पंचक ध्यानद् दिग्गस हाटक त्रिंशति चैत्यगृहान् ।
प्रयजामि मनोहर गान सुमंगल नृत्य महो व वाद्यवान् । जलम् घनसार सु कुंकुम मिश्रीत शीतल नंदन चन्दन पंक मरैः ।
वर गंध समाश्रित पद् पद् संतति मंजुळ गुंजन रम्य तरैः ॥ शुभ चन्दनं " मचकुन्द कलाधर फेन समुज्जल निर्मल कोमल तन्दुलके ।
मणिभूषितं भासुर कांचन बन्धुर भाजन रोपित सौम्य तरैः || शुभमं० ॥ प्रतं । नव a hae चम्पक पंकज कुन्द कदम्बक मन्लि सुभैः ।
स्फुट कैसर रक्तकनव्यल विंगक, मेचक वालक मूल दलैः ॥ शुभमं० ॥ पुष्यम् ॥
वर मोदक मंडक खज्जक रूपक सूपक व्यंजन हव्य रसैः ।
घृत दुग्ध महेक्षुति मिश्रित पायस तिक्वक शाक सुखद्य रसैः ॥ शुभमं• नैवेद्यम् ॥
दश दिगात लोचन बाधक तामस संचय भेदन सूर्य करैः ।
परिजित रत्न कदम्बक शोभित दीर्घशिखाधर दीप शुभमं० दीपम्
पपवनंजय मुक्त सुगन्धि महागुरु निर्गत धूप चयैः ।
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निज सौरम लुब्ध मधुव्रत निर्मित सुन्दर निष्कण चारु तरैः ॥ शुभमंः । धूपम्
सहकार लता फल दामिनिट पक्व कपित्थक पूग दलैः ।
कदलीफल जम्भल चोच सदा फल गोस्त निकोमल निम्बु फलैः । शुभ० फलम्
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