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________________ ०१ शुभ मन्दिर पंचक ध्यानद् दिग्गस हाटक त्रिंशति चैत्यगृहान् । प्रयजामि मनोहर गान सुमंगल नृत्य महो व वाद्यवान् । जलम् घनसार सु कुंकुम मिश्रीत शीतल नंदन चन्दन पंक मरैः । वर गंध समाश्रित पद् पद् संतति मंजुळ गुंजन रम्य तरैः ॥ शुभ चन्दनं " मचकुन्द कलाधर फेन समुज्जल निर्मल कोमल तन्दुलके । मणिभूषितं भासुर कांचन बन्धुर भाजन रोपित सौम्य तरैः || शुभमं० ॥ प्रतं । नव a hae चम्पक पंकज कुन्द कदम्बक मन्लि सुभैः । स्फुट कैसर रक्तकनव्यल विंगक, मेचक वालक मूल दलैः ॥ शुभमं० ॥ पुष्यम् ॥ वर मोदक मंडक खज्जक रूपक सूपक व्यंजन हव्य रसैः । घृत दुग्ध महेक्षुति मिश्रित पायस तिक्वक शाक सुखद्य रसैः ॥ शुभमं• नैवेद्यम् ॥ दश दिगात लोचन बाधक तामस संचय भेदन सूर्य करैः । परिजित रत्न कदम्बक शोभित दीर्घशिखाधर दीप शुभमं० दीपम् पपवनंजय मुक्त सुगन्धि महागुरु निर्गत धूप चयैः । " निज सौरम लुब्ध मधुव्रत निर्मित सुन्दर निष्कण चारु तरैः ॥ शुभमंः । धूपम् सहकार लता फल दामिनिट पक्व कपित्थक पूग दलैः । कदलीफल जम्भल चोच सदा फल गोस्त निकोमल निम्बु फलैः । शुभ० फलम् 1.१०१.
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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