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________________ 0011 44 । चन्द मांगी तुंगी गिरि सिद्ध हुवा, गजपंथे मुनिराय सुक्ता गिरि पावागिरिए, तारंगी तारक होप लूज़गिरि, रेवा तट ऋषिराय । अंतरीक्ष प्रभु पूजिए प्रणम् लोढा पास 1 सूर्यपुरे चन्द्रनाथ जिन, प्रभु पुजूं पाप इन्द्र भूषण अरचा करिए, हरपे गोविन्द गाय ॥ । । भवि. मवि भवि । ३० ।। । ३१ ॥ भवि ।। ॥ ३२ ॥ भवि. ॥ ३३ ॥ मथि ॥ ३४ ॥ ३५ ।। मम ॥ पश्चिम दिशि पूजा सम्पूर्णम् ॥ ॥ अथ उत्तर दिशि पूजा ॥ पर सुदर्शन मेरु रिहोदितः सुविजयाचल मंदिर मालिनः । नद दिक्षु सुमेरु महीभृतां जिन पतिन सकज्ञान्विनिवेशयत् ॥ ॐ ह्रीं उत्तर दिशि विंशति जिन चैत्यालयस्थ जिन प्रतिमा सनूड अ अवतर अवतर संवौषट् । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ॥ ऋत्र सम सन्निहितो मत्र भव वपट् सनिवापनम् ॥ हिमपर्वत संभव पद्म महानद सुन्दर शीतक नीर भरेः 1 मकरंद महासर भारत सारल, केसर रंजित गौर तरैः 11 -4.॥१००॥ ❀❀❀
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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