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चन्द
मांगी तुंगी गिरि सिद्ध हुवा, गजपंथे मुनिराय सुक्ता गिरि पावागिरिए, तारंगी तारक होप लूज़गिरि, रेवा तट ऋषिराय । अंतरीक्ष प्रभु पूजिए प्रणम् लोढा पास 1 सूर्यपुरे चन्द्रनाथ जिन, प्रभु पुजूं पाप इन्द्र भूषण अरचा करिए, हरपे गोविन्द गाय ॥
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भवि.
मवि
भवि
। ३० ।।
। ३१ ॥
भवि ।।
॥ ३२ ॥
भवि. ॥ ३३ ॥
मथि
॥ ३४ ॥
३५ ।।
मम ॥
पश्चिम दिशि पूजा सम्पूर्णम् ॥
॥ अथ उत्तर दिशि पूजा ॥
पर सुदर्शन मेरु रिहोदितः सुविजयाचल मंदिर मालिनः ।
नद दिक्षु सुमेरु महीभृतां जिन पतिन सकज्ञान्विनिवेशयत् ॥ ॐ ह्रीं उत्तर दिशि विंशति जिन चैत्यालयस्थ जिन प्रतिमा सनूड अ अवतर अवतर संवौषट् । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ॥ ऋत्र सम सन्निहितो मत्र भव वपट् सनिवापनम् ॥
हिमपर्वत संभव पद्म महानद सुन्दर शीतक नीर भरेः
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मकरंद महासर भारत सारल, केसर रंजित गौर तरैः 11
-4.॥१००॥
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