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________________ ६३. । जय माला सारे सारंग वर्षे, खवर गणकृता स्थान रम्ये विचित्र, सम्मेरो दक्षिणस्यां दिशि जिनयर सद्गेह बिम्बप्रजानां । कृत्वा शुद्धात्मचित्तं, सुरपतिरनिशं, सर्व जोपचार, पूजामष्टप्रकारा, रचयति सततं, संस्तो श्री जिनेन्द्रम् ॥ १ ॥ कर्म महागिरि वन समान सुमोह हरं, मोह मदान्ध निवारण भानु रूचि प्रकरं । सुन्दर श्री जिन पदकज मध्यय सौख्यका, जन्म बरामय नाशन मंचति पापहरं ॥२॥ दुरित महावन दावनिभं गल्पित वस्तु समर्पण करतरू सदृशं ॥ सुन्दर. ॥ ३ ॥ र वय शोभा प्रवृतं पांडुर चामर पंक्ति विराजित कांतिधरं । सुन्दर, ॥ ४ ॥ सुरगण सेवित चरण युग, दुर्घर दुष्कृत पंक विशोपण सहस करं। सुन्दर. ॥ ५ ॥ निजित भव्य जमाघ मद, चिंतित दायक मंत विवजित धर्म प्रदं । सुन्दर. ॥ ६ ॥ नरामरेन्द्र . स्तुतपाद पंकन, श्री भूषणाय मुनिभिः प्रवंदितं । श्रीज्ञान पायो निधि सौख्य दायक संपूजयतिम्म पुरंदरा वरं ।। ७ : अध्यम् । ॥ द्वितीय जयमाला ॥ पत्ता=तिपयाइण दंति, विगण उ करंति, मत्तिय जिण उवीसयहं । विजई रयणां लि, इस मनि, मचिये णिहय रसहः ॥ १ ॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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