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________________ ४. सिर संवाणिहि रिसह जिणू जामदि श्रजिय जिणंदु | A जिणं दहपय क्रमले इय कुसुमांजलि होय मोहर मे लदिए । गिरि कैलासे बाइ पदावई जिम संभत्र जियु येथे तिरद्धि, पविण दवणेहि सुमइ भंडार असुर तरु हि, पउमप्पहु परमेहि । मंदारिडि सुपास जिणु, चंदप्पड कंपेहि जिणंदह • यिलिय हुलिहिं सुविहि जिणु सीयल सीय कुसुमेहि । जिणंदह जिण सेयांस असोदियहि, वासुपूज्ज बिमलेहि ॥ जिदह विमल भंडार कं इयहि, सुबेदि तु ॥ जिणंद६० बहुम कुंदहिधम्म जिणु रत्तोप्पल शांति जियदु । जिबंदह कुजय हुल्लिाह कुश्रु जिणु घर जिस पारिय हुल्लि ॥ जिदह मल्लय हुल्लिय मल्ली जिणु सुव्त्रयकचणहुल्लि ॥ जदइखमि जिवर वालिय विगरहिणेमि निणंदृ ।। जिदह पाडल हुल्लि पास जिस बटमा कमलेहि ।। दि० बोमि प्रज्जउ श्रट्ट नई अक्षिणि अवर मियार ॥ जिणंदइस रयणांजलि विषय सहू जोगीगाह हुदेई || निदह० ॥ १४ ॥ ।। १३ ।। ॥ १४ लिए ।। २ ।। जिदद ॥ ३ ॥ जिणंदह० ॥ ४ ॥ ॥ ।। ५ ।। ।। ६ । ॥ ७ । " ८ || ६ ॥ १० ॥ ११ ॥ ॥ ।। १२ ।। →.. ॥६४॥ 444
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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