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________________ ··· ( भाषा सवैया ) शील सदा नरको सुख दायक शील समान बड़ो नहीं कोई । शील फलें अति शीतल पावक जानकी को जग देखत होड़ । शाह सुदर्शन शूचि सिंहामन शील फलै भात दोई | ज्ञान कडे नर सोई विचच्छल ओ नर पालन शील समोई ॥ १० ॥ ॐ ब्रह्मा महार्घ्यम् ॥ १० ॥ ( भाषा सर्वेश) सार चमा अरू मार्दव आर्जव सत्य सदा जग शोच सहाई ॥ संयम सार वयो तप भेदसु दान अकिंचन धर्म कहाई । अल बड़ो भत्र तारण को दश लक्षण है सबको सुख दाई । ज्ञान कहे परमारथ सौं न करे तिसको जिनराज दुहाई । ११ ॥ (पुष्पांजलि दिपेन ) एभिमंत्रजप्यं कुर्याद् ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं उत्तम क्षमा श्रमाय नमः ॐ ह्रीं उत्तम आर्जव धर्मागाय नमः ॥ ३ ॥ ॐ ह्रीं उत्तम शौच धर्मांगाय नमः || ५ 12 ॐ उत्तम मार्दव धर्मांगाय नमः ॥ २ ॥ ॐ ह्रीं उत्तम सत्य धर्मांगाय नमः ॥ ४ ॥ ॐ ह्रीं उत्तम संयम धर्मांगाय नमः ॥ ६ ।
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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