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________________ - - - - A नवधा सर्वदा पाल्यं, शीलं संतोष भारिमिः । भेदा भेदेन संयुक्तं सद् गुरुणां प्रसादतः ॥ १० ॥ * ही उत्तम ब्रह्मचर्य धर्मागाद अध्य॑म् ।। पता:-मचट दुवक, पारिज्जइबरु, केडिजद विसयासणिरु । तिय सुक्खयरत्तो, मशकरिमनो, तं जि भव्य रक्खेहु थिरू ॥१॥ चित्त भूमि मयणु जि उपवज्जह तेणजु पीडउ करइ अकज्जह । वियह सरीरइ विदह सेवइ, णिय परणार ण महउ बेक्ह ॥ २ ॥ णि वडइ णिस्य मरादुइ सुजद, बो जिपमञ्च3 मंजर । इय जाणे विशु मस बयकाए बंभचेरू पालहु अणुराए ॥ ३ ॥ रणव पयार सस्थिय सुइयारउ बंमध्ये विणु र तउ विय सारउ । मध्वे विणु काय किसइ विहल सया भासिय जिणेसा । ४ ॥ बाहिर फरसेंदिय मुह रक्खन, परमभ मातिर पिक्सट । ___ एण उवाण लम्भइ सिवहरू, इम रइधू बहु भणद विशय यरू ॥ ५ ॥ पत्ता-जिस माह महिज्बइ, मुषि यश विज, दालखण पालीइ णिरू । भो खेम सियामुय, मन्त्र विणय जुय, होलि उम्मयहु करहु बिरू ॥ ६ ॥ A AAAM--- - ४il - -
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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