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ॐ ही उत्तम तप धर्मामाय नमः ॥ ७ ॥ ॐ ही उनम स्याम धमांगाय नमः ॥ = || ॐ ही उत्तम आकिंचन धींगाय नमः ॥ ६ ॥ ॐ ह्रीं उचम ब्रह्मपर्य धौगाय नमः ॥ १० ॥
(अर्घ समुद्धरेन ) अथ जय माला इस काऊण णिज्जरं जे इणंति भव पिंजरं । नीरोयं अजराम ते लहंति सुक्खं परं ॥१॥ जेण मोक्ख फल पानिजह, सां यम्मंग एहहु गिज्नइ ।
खम खमायनु तु गय देहउ, मद्दउ पल्लउ अज्जउ सेहउ ॥ २॥ सरुच सउन्ब मूल संजम दलु, दुविद्द महा तर रात्र कुसुमाउलु ।
चरविड चाउय साहिय परमलु पी णिय मावलोय छप्पायल ॥ ३ ॥ दिय संदोह सह कल कलयल, सुरणर वर खेपर सुइ सपफलु ।
दीणा रगाह दीह सम रिण गहु सुद्ध सोम तणु मित्र परिग्गहु ॥ ४॥ चमचेरू छायइ सुहासिड, राय हम नियरेहि समासिउ ।
एहउ धम्म रूपख लाखिज्जड जीव दया वयण हि राखिन || ५ ॥ झारपट्ठाण भन्लारउ विज्जर, मिच्छामई पवेस ण दिन्ज ।
सील सलिल धारहि सिंचिन्नइ, एम पयन रण बढारिजइ ॥ ६ ।। घता- कोहानल चुक्कऊ, होउ गुरुक्कर, जाइ रिसिदिय सिद्धगई ।
जगताइ सुहकरू धम्म, महातरू, देइ फजाइ सुमिट्ठमई ॥ ७ ॥