SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । ||६|| . ॐ ही उत्तम तप धर्मामाय नमः ॥ ७ ॥ ॐ ही उनम स्याम धमांगाय नमः ॥ = || ॐ ही उत्तम आकिंचन धींगाय नमः ॥ ६ ॥ ॐ ह्रीं उचम ब्रह्मपर्य धौगाय नमः ॥ १० ॥ (अर्घ समुद्धरेन ) अथ जय माला इस काऊण णिज्जरं जे इणंति भव पिंजरं । नीरोयं अजराम ते लहंति सुक्खं परं ॥१॥ जेण मोक्ख फल पानिजह, सां यम्मंग एहहु गिज्नइ । खम खमायनु तु गय देहउ, मद्दउ पल्लउ अज्जउ सेहउ ॥ २॥ सरुच सउन्ब मूल संजम दलु, दुविद्द महा तर रात्र कुसुमाउलु । चरविड चाउय साहिय परमलु पी णिय मावलोय छप्पायल ॥ ३ ॥ दिय संदोह सह कल कलयल, सुरणर वर खेपर सुइ सपफलु । दीणा रगाह दीह सम रिण गहु सुद्ध सोम तणु मित्र परिग्गहु ॥ ४॥ चमचेरू छायइ सुहासिड, राय हम नियरेहि समासिउ । एहउ धम्म रूपख लाखिज्जड जीव दया वयण हि राखिन || ५ ॥ झारपट्ठाण भन्लारउ विज्जर, मिच्छामई पवेस ण दिन्ज । सील सलिल धारहि सिंचिन्नइ, एम पयन रण बढारिजइ ॥ ६ ।। घता- कोहानल चुक्कऊ, होउ गुरुक्कर, जाइ रिसिदिय सिद्धगई । जगताइ सुहकरू धम्म, महातरू, देइ फजाइ सुमिट्ठमई ॥ ७ ॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy