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________________ - - - ७६) सो भौ भवालि, जरमरणालि किम पाइ सुइ पण सुगई ॥१॥ संजम पदिय दंडणेण, संगम जि कमाप विहाडणेण । संजम दुद्धर तत्र धारणेग, मंजम रस चाय बियारणेण ॥ २ ॥ संगम पास शियमणेण, संजम मगु पसरहु भणे । संजम गुरू काय कलेसणेगा, संजय परिगह गिह चायणेण ॥ ३ ॥ संजम तस थावर रक्खणेण, संजम तिणि जोयणियत्तणेण। संजम सु तत्थ परिरकलणेण, संजम बहु गमण। चयंतणेण ॥ ४ ॥ संजम अणुकंप कुगांतणेण, संजाम परमत्थ वियारणेण । मंजम पोसई दसणहु अत्यु, संजम तिसहूणिरू मोक्स पत्थु ॥ ५ ॥ संजम विणु णर भव सफल सुरण, संजम पिणु दुग्गई जिउपवएणु । संजम विण घडियम इत्थ जाउ, संजम विण विहली अस्थि आउ ॥६। पत्ताः-इह भन पर भवणे। संजम सरणो, होजउ जिण णाहे भणि ओ । दुग्गई सर सोसण, खरकिरणोबम, जेण भवारि विमम हणिो । ७ ॥ भाषा ( सवैया ) संयम दोय कहे जिन भागम, संयम से शिव मास्ग लहिये । पाप गशे मन संयम सौंधार, कर्म कठोर कषाय को दहिये ॥ . . . .
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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