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धम्म सउच्च सल्ल कयचाए धम्म सउच्चुनि णिम्मसमाए ।
धम्म सउच्च कसाथ श्रावे, धम्म स उच्च ण लिप्पइ पावै ॥ ४ ॥ अहा जिणवर पूज विहाणे, णिम्मल फासुय जल कयण्हाणे ।
तं पि सउच्च मिहत्थउ भासइ गावि मुणिवरह कहिउ लोयासिउ ॥ ५ ॥ पत्ता:-भव मुणिनि अणिच्चउ, धम्म सउच्चउ पालिज्जइ एयग्गमणि । सिव मन्ग सहाश्रो सिव पयदामो, अणुप्र चितहिं किंणि खणि ॥६॥
( भाषा सत्रया। शोच करो जिन पूजन को मनशुद्ध रहै परमारथ केरो । इन्द्रिय पांच रहैं अपने वश कर्म कषाय को पाड़त एरो ॥
मंत्र को स्नान करें युनि पुगव, पायत नाहिं संसार को फेरो ।
___ ज्ञान कहै जग शौच बड़ो, परमारथ सुमरन ज्ञान बढ़ेरो ॥ ५ ॥
ॐ ही उत्तम शौच धर्मागत्य महाय॑म् ॥ ५ ॥ संयम द्विविधं लोके, कथितं मुनि पुगः ।
पालनीयं पुनश्चिते, भव्य जीवेन सर्वदा ॥ ६ ॥
ॐ ह्रीं उत्तम संयम धर्मागाय अर्यम् ।। पत्ता:-संजम जणि दुन्सहु, तं पारिल्ल हु, जो छंडइ पुण मृढ मई ।
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