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आर्या - सच्चु
तं
पालडु
धम्म फलेगा केवल खाण बहेइ थ
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भो मन्त्र, भणहुए अलियर इह वय ॥ ७ ॥
( भावा सवैया )
नर क्यों नर की गिनती में गिनाये । त दुर्गति पाक्त बोहर आये ।
सांच नहीं घट भीतर सो
राय तु जंग देखत
नरके हि समाये,
सत्य बड़ो पट् दर्शन में जिनराज कहाये ॥ ४ ॥
झूठ बसै जिसके मुखमें नश्ते जगमें ज्ञान कहें जग
ॐ ह्रीं उत्तम सत्य
माय महाध्म् ॥ ४ ॥
बाह्याभ्यंतरैश्चापि मनोवाक्काय शुद्धिभिः शुचित्वेन सदा भाव्यं पाप भीतः सु श्रावकैः ॥ ५ ॥
ॐ ह्रीं उत्तम सोच धर्मा गायार्घ्यम् ॥
पचाः- सच्चुजि धम्मंगो, तं जि अभंगो, मिरांगो उपश्रमामई ।
जर मरण विद्यासणु विजय पयासणु काइज्जइ महिणिमुनि थुई '
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धम्म सउच्च होहमण सुद्विय, धम्म सउच्च वयधा गिद्विय
धम्म सउच्च लोह वज्जेतउ, भ्रम्म सउच्च सुत्तव पहि जंतउ
धम्म सउच्च रंग त्रय धारणु, बम्म सउच्च मयहणिवारणु ।
।। २ ।।
धम्म सउच्च जिणायम भयो, धम्म सउच्च सुगुण अणु मगणे ||३||