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तं इन्धुजि बिज्जइ, तं पालिज्जा, तंणि सुपिज्जा खय जएणु ॥ १ ॥ जारि सुणिजय चिच चिंतज्जइ, तारिसु अएणहु पृणा भासिज्जइ ।
विज्जइ पुण वारिस सुह संचणुः तं अजव गुण मुणहु प्रचणु ॥ २ ॥ माया सल्ल मणाहु पासार, अज्ज उ धम्मपवित्त विधारहु ।।
वउ तर माया पियउ गिरत्थर, अजउ सिरपुर पंथ सउत्थर ॥ ३ ॥ जत्थ कुटिल परिणाम चइज्जह, तहिं अजजउ धम्मजु संपज्जा ।
दसण पाण सरूव अखंडो, परम अतिंदिय सुक्ख करंडो ॥ ४ ॥ अप्पे अपउ भवद तरंडो, एरिस चेयण भाव पयंडो ।
सो पुण अजउ धम्मे लमइ अज्जवेण रिय मण सुभा ॥ ५ ॥ पत्ता-अजउ परमप्पउ, गय संकापउ, चिम्मित सासय अभयपरः । तं णिरुजाज, संसउहिज्जइ, पाविज्जइ लिहिअरल बऊ ॥ ६ ॥
( भाषा सवैया ) पार्जव भाव धरै मन में जिससे मव ठार के मोक्ष सिधार ।
बत है भव सागर में तस हाय गही पर पार उतारै ॥ संपति देह निवाज खढो करे, आर्जव कर्म को मान विगारे ।
ज्ञान कहै सोह मूह पड़ो भव मानव पायके प्रार्जब छारै ॥ ३ ॥
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