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________________ || मद्दवेश परिणाम विसुद्धि, महवेण विहु लोयह सिद्धी । __ मद्दवेध दुई विह तब सोहइ, मद्दवेण तीजो हर मोहह ॥ ४ ॥ .. मद्दउ जिण सासण जाणिज्मद, अप्पा पर सब भासिनह ।। । मद्दउ जणा समुद्दद तारज ॥ ५ ॥ आर्या-सम्मइंसस अ, मउ परिणाम जु मुखहु । इय परियाण विचित्त महउवम्म अमल शुषहु ॥६ ॥ ( भाषा सवैया ) मार्दा भाव न आक्त जौं लग तौं लग धर्म कहा उपजावे, माव कठोर रहे घट भीतर नूतन पाप संयोग बढावे । भारत रौद्र वसे उसके मन पापत निश्चय दुर्गति पाचे, ज्ञान कहे मृदुमाव को धारके, फेरि संसार कबहु नहीं आये ॥ २ ॥ ॐ ही उत्तम मार्दव धर्मा गाय अयं ॥ २॥ आर्यस्वं क्रियते सम्यक् दुष्ट बुद्धिश्व त्यज्यते , पाप चिन्ता न कर्तव्या श्रावकैध चिन्तकः ॥ ३ ॥ ॐ ही उत्तम आर्जव धर्मा गाय प्रय॑म् ॥ यत्त:- धम्महवरलक्खणु, प्रज्जउशिरमणु, दुरिय विहंडणु सुद जणाणु , ४il
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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