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________________ ७३ गौतम पाय नमू मन शुद्ध, रंग उपांग खाए हि गाजै I सद्गुरू को उपदेश सुगयो हम, धर्म सदा दशलक्षण छाजै ॥ १ ॥ केवल एक क्षमा विनही तप संयम शील प्रकारथ जायौ । पाक सुपा यो सुथरो जैसे लोए विद्दीन अनाज को खायो I देव जिनेन्द्र कहे थुर नगमें नया तारय मोच पिया I ज्ञान कहे नर अन्वर सूत मार क्षमा दशलक्षण राखौं ॥ २ ॥ ॐ ह्रीं उत्तम क्षमः घर्मा गाय महाभ्यम् । मृत्यं सर्वभूतेषु कार्य जीवन सर्वदा काठिन्यं त्यज्यते नित्यं धर्म बुद्धि विज्ञानता ॐ ह्रीं उत्तम मार्दव धर्मा गायाम् ॥ बच्चा:- मदव भव मद्दणु, मायविंदणु दव धम्मजु मूलहु विमलु । सम्बह पियारउ, गुण मग सारउ, तिस उचऊ संजम खलु ॥ १ ॥ म मा कसाय विडणु, महउ पंर्वेदिय मण दंड । ॥ २ ॥ मदद धम्म करूणा बल्ली, पसरह चित्त महीरुह वली ॥ २ ॥ म जिवर मत्ति पयासर, महउ कुमइ पसरु पिणास । महवे बहु विrय पट्टाइ मद्दवेश जगा बहरी हट्ट 11 3 11 ॥ शा
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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