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गौतम पाय नमू मन शुद्ध, रंग उपांग खाए हि गाजै
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सद्गुरू को उपदेश सुगयो हम, धर्म सदा दशलक्षण छाजै ॥ १ ॥
केवल एक क्षमा विनही तप संयम शील प्रकारथ जायौ ।
पाक सुपा यो सुथरो जैसे लोए विद्दीन अनाज को खायो I देव जिनेन्द्र कहे थुर नगमें नया तारय मोच पिया
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ज्ञान कहे नर अन्वर सूत मार क्षमा दशलक्षण राखौं ॥ २ ॥
ॐ ह्रीं उत्तम क्षमः घर्मा गाय महाभ्यम् ।
मृत्यं सर्वभूतेषु कार्य जीवन सर्वदा
काठिन्यं त्यज्यते नित्यं धर्म बुद्धि विज्ञानता
ॐ ह्रीं उत्तम मार्दव धर्मा गायाम् ॥
बच्चा:- मदव भव मद्दणु, मायविंदणु दव धम्मजु मूलहु विमलु ।
सम्बह पियारउ, गुण मग सारउ, तिस उचऊ संजम खलु ॥ १ ॥ म मा कसाय विडणु, महउ पंर्वेदिय मण दंड ।
॥ २ ॥
मदद धम्म करूणा बल्ली, पसरह चित्त महीरुह वली ॥ २ ॥
म जिवर मत्ति पयासर, महउ कुमइ पसरु पिणास ।
महवे बहु विrय पट्टाइ मद्दवेश जगा बहरी हट्ट 11 3 11
॥ शा