________________
.
.
.
७२ 10
ॐ हीं उत्तम क्षमाधर्मा गाय अर्यम् । बचा- उत्तम खम म६उ, अज्जड मच्चाउ, पुण सउच्च संजम सुतऊ ।
चाउवि आकिंचणु, भय भय बंचणु, बंम चेरु धम्मजु अखऊ ॥ १ ॥ उत्तम खम तिल्लोयह सारी, उपम खम जम्मो वहितारी ।।
उत्तम खम रयत्तयधारी, उत्तम खम दुग्गई दुह हारी । २ । उत्तम खम गुण गण सहयारी, उत्तम खम मुलिविंद पयारी ।।
उत्तम खम बुहयण चिंतामणि, उत्तम स्त्रम संपज्जइ थिरमणि ॥ ३ ॥ उत्तम खम मह णिज्ज सयल जणु, उत्तम खम मिच्छत्त विहंडणु ।
जह असमस्थह दोसु खमिज्जह, जहि अप्तमत्थह ण वि कतिजना ॥ ४ ॥ जहि आकोसण वपण सहज्जइ, जहि पर दोसण जण भासिज्जइ ।
जह चैपण गुण चित्त धरिजइ नहिं उत्तम वम जिणे कहिज्जइ ॥ ५ ॥ धत्ता- उत्तम खम जुया, सुररुग गया, कंवलणाण लहंवि थिरू । हुयसिद्ध चिरंजण मत्र दुर भंजणु, श्रमणिय रिसि पुगमजि विरू । ६ ॥
( भापा सवैया ) पंच जिनेन्द्र धरू' मनमें जिन नाम लिये सब पातक भाजे,
शारद मात प्रणाम करू', जाके हन्थ कमण्डल पोथी बिराजै ।
1.२